सोमवार, मई 04, 2009

इम्तहान

जाने क्यों इम्तहान होता है,
साल भर मस्ती और अंत में
ये जन-जाल होता है.

दिन रात बस सिलवटों का डेरा,
आँखों के नीचे अँधेरा होता है.
दुनिया घूमने जाती है, ख़ुशी मनाती है
और ये दिल, मायूस किताबों में होता है.

एक सवाल बचपन से जारी है,
इम्तहान से पहले क्यों पेट को होती बीमारी है.
घर वाले सब हंसते हैं,
क्यों चुना इस विषय विशेष को
हम ये सोच सोच कर रोते हैं.

कल इम्तहान है और आज Tension से,
keyboard से कवितायेँ झड़ रहीं हैं.
न जाने कल इम्तहान में क्या झडेंगे,
पता चला वहां भी कवितायें झड़ रहीं हैं.

किताबों ने भी जवाब दे दिया है,
कहतीं हैं बेटा तुझे दवा की नहीं
है ज़रुरत अब तो दुआ ही तेरी,
आखरी उम्मीद रह गयी है.....

--नीरज

2 टिप्‍पणियां:

आपके विचार एवं सुझाव मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं तो कृपया अपने विचार एवं सुझाव अवश दें. अपना कीमती समय निकाल कर मेरी कृति पढने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.