मंगलवार, मई 19, 2009

लोग पूछते हैं...

लिखता हूँ तेरा नाम फिर मिटा देता हूँ,
लोग पूछते हैं तू कुछ लिखता क्यूँ नहीं?

मोहब्बत से बढ़कर क्या है ज़िन्दगी में,
लोग पूछते हैं तू कुछ करता क्यूँ नहीं?

तेरे ख़त के पुर्जे हैं दिल में दफन,
लोग पूछते हैं तू कुछ पढता क्यूँ नहीं?

तूने अंदाज़-ए-गुफ्तगू निगाहों से सिखाया,
लोग पूछते हैं नज़रें उठता क्यूँ नहीं?

आशिक फ़कीर से क्यों होते हैं अक्सर,
लोग पूछते हैं तू मांगता क्यूँ नहीं?

मैं को "मै" में डूबा गयी थी,
लोग पूछते हैं पैमाना थमता क्यूँ नहीं?

--नीरज

3 टिप्‍पणियां:

  1. namaskar mitr,

    aapki kavitayen padhi , sab ki sab behatreen hai .. aapki kavitao me jo bhaav hai ,wo bahut hi gahre hai ..

    aapko badhai .. pyaar ke upar likhi gayi ye kavita acchi lagi ..

    dhanywad.

    meri nayi kavita " tera chale jaana " aapke pyaar aur aashirwad ki raah dekh rahi hai .. aapse nivedan hai ki padhkar mera hausala badhayen..

    http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html

    aapka

    Vijay

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आपके विचार एवं सुझाव मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं तो कृपया अपने विचार एवं सुझाव अवश दें. अपना कीमती समय निकाल कर मेरी कृति पढने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.