गुरुवार, अप्रैल 23, 2009

सरफरोशी की तमन्ना



सरफरोशी की तमन्ना क्या अब हमारे दिल में है?
देखना है ज़ोर कितना बाजू-ए-कातिल में है.

जलियांवाला खूँ तो बिस्मिल देख कब का धुल गया,
खूँ का रेला बहता अब तो मज़हबी इस दिल में है.

ट्रेन लूटने का ज़माना अब तो बिस्मिल लद गया,
अस्मतों की धज्जियाँ उडती यहाँ अब खुल के हैं.

इंसानियत पे लड़ने वाले अब तो बिस्मिल मर गए,
गोदरा-अयोध्या के मंज़र जलते यहाँ अब दिल में हैं.

गाँधी का तो कारवां कब का देखो लुट गया,
वोट का ही कारवां चलता सियासी दिल में है.

एक भारत का वो सपना भी तो देखो मिट गया,
आरक्षण की अब तो भट्टी जलती युवा के दिल में है.

सरफरोशी की तमन्ना अब तो बिस्मिल बुझ गयी,
बस अपने मतलब की मसरूफियत कलयुगी इस दिल में है.

-- नीरज

नोट:-ऊपर की दो पंक्तियाँ तो आप सभी लोग पहचानते ही होंगे, बिस्मिल साहब की हैं. बस मैंने बीच में "क्या" जोड़ दिया है.माफ़ी चाहूँगा अगर इस रचना से किसी के दिल को आघात हो तो.

4 टिप्‍पणियां:

  1. tooo good ,n so much true ...pehle bhi padhi hai ..or yad aaya .. syad isi ko padhke apni ek kavita me itni lambi lambi burai fenk daali thi maine india ki :(..hehhe

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  2. neeraj this is very nice written mujhe nai lagta in changes se kisi ke dil ko aaghat pahuch sakta hai ek msg hai isme baki sabki samaj pe depend karta hai ..:)

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  3. @Vandana - Thanx alot...heheheheh......mujhe yaad nahin konsi wali likhi thee??

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आपके विचार एवं सुझाव मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं तो कृपया अपने विचार एवं सुझाव अवश दें. अपना कीमती समय निकाल कर मेरी कृति पढने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.