कुछ मनचली साँसों ने
कली की खुशबू छीनली।
हैवानियत ज़ोरों पे थी
रूह लुट गयी उस रोज़
जिस चाँद की कसमें खायीं
वो बस तकता रहा.
सितारे खिल खिलाते रहे
जहान लुटता रहा उस रोज़
चीखती, छट-पटाती जोर से
रहम मांगती रही.
चिन्दियाँ उड़ती रहीं
जिस्म खाख़ होता रहा उस रोज़
उठी...गिरी...कुछ घिसती
खड़ी हुई....फिर चली.
तन ढांप कर रूह खड़ी थी
शहर के चौराहे पे उस रोज़
-----------------------------------
हजारों यूँही रोज़ लड़तीं हैं,
गिरतीं हैं और उठतीं हैं
अस्मत की खातिर.
कोई इन हैवानों को जा बता आये
बहने और माँ तुम्हारी भी हैं,
आबरू और रूह उनकी भी है,
सुना है...तुम्हारे मौहल्ले में चौराहे भी है....
-- नीरज
कली की खुशबू छीनली।
हैवानियत ज़ोरों पे थी
रूह लुट गयी उस रोज़
जिस चाँद की कसमें खायीं
वो बस तकता रहा.
सितारे खिल खिलाते रहे
जहान लुटता रहा उस रोज़
चीखती, छट-पटाती जोर से
रहम मांगती रही.
चिन्दियाँ उड़ती रहीं
जिस्म खाख़ होता रहा उस रोज़
उठी...गिरी...कुछ घिसती
खड़ी हुई....फिर चली.
तन ढांप कर रूह खड़ी थी
शहर के चौराहे पे उस रोज़
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हजारों यूँही रोज़ लड़तीं हैं,
गिरतीं हैं और उठतीं हैं
अस्मत की खातिर.
कोई इन हैवानों को जा बता आये
बहने और माँ तुम्हारी भी हैं,
आबरू और रूह उनकी भी है,
सुना है...तुम्हारे मौहल्ले में चौराहे भी है....
-- नीरज
hatzz off.. bahut marmsparshi kavita hai
जवाब देंहटाएंBahut bahut shukriya Deep. :)
जवाब देंहटाएंAate rahiye ga.