सोमवार, मई 04, 2009

प्रतिबिम्ब

हरिद्वार गया था कुछ रोज़ पहले,
लोगों को पावन डुबकी लेते देखा,
बस एक ही ख्याल आया दिल में,
मनुष्य कितना विचित्र है,
मरने से डरता है पर फिर भी,
खुद की अस्थियाँ बहने से पहले,
गंगा में प्रतिबिम्ब ज़रूर देखता है।

--नीरज

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