शुक्रवार, मई 29, 2009

मैं

न रात हूँ, न दिन हूँ,
न हूँ मैं भगवान कोई.
आकाश नहीं, पर्वत नहीं,
ना ही हूँ झरना कोई.

खामोशी की दस्तक नहीं,
न अँधेरे का फलसफा कोई,
न झील में तैरती पतवार हूँ,
न अम्बर का फ़रिश्ता कोई.

हाड मॉस का देह मेरा,
छोटा सा है ह्रदय मेरा.
रात मेरी भी हैं काली,
दिन होता रोशन मेरा.

अश्रु की पैदा वार भी है,
ग़मों की खरपतवार भी है.
अंधेरों से मैं भी हूँ डरता,
चांदनी की खिलखिलाहट भी है.

पूछते हो क्यों ये मुझसे,
कौन हूँ मैं कौन हूँ मैं?
तुम बताओ अब ये मुझको,
क्या तुमसे भी कुछ भिन्न हूँ मैं?

-- नीरज

2 टिप्‍पणियां:

  1. पूछते हो क्यों ये मुझसे,
    कौन हूँ मैं कौन हूँ मैं?
    तुम बताओ अब ये मुझको,
    क्या तुमसे भी कुछ भिन्न हूँ मैं?

    bhinn to nahi ho lekin phir bhi apne aap me alag ho ....is pehchan ke saath tum sabse alag hi pehchane jao esi hamari dua hai
    आदमी मूरत है
    चरित्र सूरत है
    गुण वस्त्र है
    संस्कार गहना है

    जवाब देंहटाएं
  2. simple Insaan ho

    shayad ..milawat ki kami hain....... wastvikta barkarar hain

    जवाब देंहटाएं

आपके विचार एवं सुझाव मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं तो कृपया अपने विचार एवं सुझाव अवश दें. अपना कीमती समय निकाल कर मेरी कृति पढने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.